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आज का मंज़र कुछ ऐसा बेरंग है कि हर तरफ धुंध दिखती है .
दिलों के द्वार बंद हों , तो यूँ ही अरमानों पे दूसरों की रोटियां सिकती हैं .
जागने - जगाने के ख्वाब नहीं पालता मैं , अभी पलो ख्वाब्गाहों में .
ख्वाब टूटने के दर्द का हो इल्म , तो आना हमारी बाहों में .
पाओगे वही सुकून, वही एहसास .
जो करता है , इन्सान से इन्सान का रिश्ता खास .