5 Jul 2013

आज का मंज़र

















 आज  का मंज़र कुछ ऐसा  बेरंग है कि हर तरफ धुंध दिखती है .
दिलों के द्वार बंद हों , तो यूँ ही अरमानों पे दूसरों की रोटियां सिकती हैं  .

जागने - जगाने  के ख्वाब नहीं  पालता मैं , अभी पलो ख्वाब्गाहों  में .
ख्वाब टूटने के दर्द का हो इल्म , तो आना हमारी बाहों में .

पाओगे वही सुकून, वही एहसास .
जो करता है , इन्सान से इन्सान का रिश्ता खास .