जिंदगी की अंधेर गलियों का चमचमाता गलियारा पसरा हुआ है,
चकाचौंध में चौंधियाई आँखों के सामने मंजर बिखरा हुआ है ,
बहुत चाहते हैं समेटें बाँहों में जो कुछ भी पीछे बिसरा हुआ है।
अहले जिंदगी ऐसी है रूठी, जैसे जीने का सलीका खो गया है ,
बरबस कोशिशों के बाद भी फलक पर चित्रित रंग फीका हुआ है।
जो भी हो, जैसी हो, रूहानियत को पाने जुम्बिश खाली न होगी ,
इतना तो ऐतबार है उसपे, कि हमारी हर रात काली न होगी।
चकाचौंध में चौंधियाई आँखों के सामने मंजर बिखरा हुआ है ,
बहुत चाहते हैं समेटें बाँहों में जो कुछ भी पीछे बिसरा हुआ है।
अहले जिंदगी ऐसी है रूठी, जैसे जीने का सलीका खो गया है ,
बरबस कोशिशों के बाद भी फलक पर चित्रित रंग फीका हुआ है।
जो भी हो, जैसी हो, रूहानियत को पाने जुम्बिश खाली न होगी ,
इतना तो ऐतबार है उसपे, कि हमारी हर रात काली न होगी।